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आधुनिकता के दौर में मानवता का पतन

आधुनिकता के दौर में मानवता का पतन

📅 12 Nov 2025   |   🏫 POLITICAL SCIENCE   |   👁️ 142 Unique Views

Dr Abhinesh Gupta
Dr Abhinesh Gupta
POLITICAL SCIENCE Department

वर्तमान युग को हम आधुनिकता का युग कहते हैं विज्ञान तकनीकी और संचार के क्षेत्र में अभूतपर्व  प्रगति ने मनुष्य के जीवन को आसान और सुविधाजनक बना दिया है। आज इंसान चांद और मंगल तक पहुंच गया है लेकिन विडंबना यह है कि जितनी ऊंचाइयां हमने विज्ञान में पाई हैं उतनी ही गहराई में हम मानवता के पतन की ओर बढ़ गए हैं। आधुनिकता ने हमें सुविधा तो दी है पर संवेदना छीन ली।

आज का मनुष्य मशीनों के बीच जी रहा है, परंतु दिल के स्तर पर वह अकेला होता जा रहा है। भौतिक सुख सुविधाओं की ॳधी दौड़ ने इंसान को स्वार्थी प्रतिस्पर्धी और निष्ठुर बना दिया है। रिश्तो की आत्मीयता घटती जा रही है और ‘मैं’ की भावना ने 'हम' को पीछे छोड़ दिया है। आधुनिक जीवशैली  में नैतिकता ,करुणा और सहानुभूति जैसे मानवीय मूल्य कहीं गुम होते जा रहे हैं।

सोशल मीडिया और तकनीक ने इंसान को जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम किया है। आज लोग एक दूसरे से आभासी दुनिया में जुड़े हैं पर असल जीवन में उनसे दूरी बढ़ती जा रही है। परिवारों में संवाद घट रहा है,मित्रता स्वार्थ पर आधारित हो रही है और समाज में संवेदनशीलता का स्थान उदासीनता ने ले लिया है।

आधुनिकता के नाम पर उपभोक्तावाद ने मनुष्य को वस्तुओं का दास बना दिया है। व्यक्ति की पहचान अब उसके चरित्र से नहीं बल्कि उसकी संपत्ति ,पद और शक्ति से की जाने लगी है। शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान नहीं,नौकरी बन गया है। नैतिकता का स्थान सफलता ने ले लिया।  परिणामस्वरूप समाज में अपराध, हिंसा और असमानता और अविश्वास बढ़ रहे हैं।

हमें यह समझना होगा कि आधुनिकता और मानवता विरोधी नहीं है। समस्या तब उत्पन्न होती है जब आधुनिकता मूल्यो से रहित हो जाती है। यदि विज्ञान और तकनीक को मानवीय दृष्टिकोण से जोड़ा जाए, तो वही आधुनिकता मानव कल्याण का साधन बन सकती है।

अतः आज सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम आधुनिकता के साथ-साथ मानवता के मूल्यों को भी संजोए। करुणा ,सहानुभूति ईमानदारी और प्रेम जैसे गुणो को जीवन का हिस्सा बनाएं। तभी हम इस पतनशील युग को एक मानवीय युग में बदल सकते हैं।

निष्कर्ष: 

आधुनिकता का वास्तविक अर्थ केवल तकनीकि उन्नति ही नहीं, बल्कि मानवता की उन्नति भी होना चाहिए। जब तक हम मानव होने की संवेदना को जीवित रखेंगे तब तक सभ्यता सच्चे अर्थों में आधुनिक कहलाएगी।


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